Saturday 19 July 2014

यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत..yada yada hi dharmasya glanir bhavati bharata



यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्
भावार्थहे भारत! जब-जब धर्म की हानि और अधर्म की वृद्धि होती है, तब-तब ही मैं अपने रूप को रचता हूँ अर्थात साकार रूप से लोगों के सम्मुख प्रकट होता हूँ॥7

परित्राणाय साधूनां विनाशाय दुष्कृताम्
धर्मसंस्थापनार्थाय सम्भवामि युगे युगे
भावार्थसाधु पुरुषों का उद्धार करने के लिए, पाप कर्म करने वालों का विनाश करने के लिए और धर्म की अच्छी तरह से स्थापना करने के लिए मैं युग-युग में प्रकट हुआ करता हूँ॥8