Sunday, 7 April 2013

कबीर वाणी 5….. kabir vani

माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥ 1 ॥

माटी कहे कुम्हार से, तु क्यों रोदें मोय ।
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रोदूंगी तोय ॥ 2 ॥

रात गंवाई सोय के,दिवस गंवाया खाय ।
हीना जन्म अनमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥ 3 ॥

नींद निशानी मौत की, उठ कबीरा जाग ।
और रसायन छाड़ि के, नाम रसायन लाग ॥ 4 ॥

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