धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥ 1 ॥
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥ 1 ॥
कबीरा ते नर अन्ध है, गुरु को कहते और ।
हरी रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥ 2 ॥
पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय ।
एक पहर ह्ररी नाम बिन, मुक्ति कैसे होय ॥ 3 ||
कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान ।
जम जब घर ले ,जायेंगे, पड़ी रहेगी म्यान ॥ 4 ॥
शीलवन्त सबसे बड़ा, सब रतनन की खान ।
तीन लोक की सम्पदा, रही शील मे आन ॥ 5 ॥
हरी रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥ 2 ॥
पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय ।
एक पहर ह्ररी नाम बिन, मुक्ति कैसे होय ॥ 3 ||
कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान ।
जम जब घर ले ,जायेंगे, पड़ी रहेगी म्यान ॥ 4 ॥
शीलवन्त सबसे बड़ा, सब रतनन की खान ।
तीन लोक की सम्पदा, रही शील मे आन ॥ 5 ॥
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