Wednesday, 31 October 2012

भज ले नारायण का नाम


जिसने हरि का नाम लिया वो, तर गया भव से पार
भज ले नारायण का नाम-


नारायण-नारायण भज तू, नारायण आधार
नर-नर में नारायण बसते, वो ही तारनहार
भज ले नारायण का नाम-

नारायण का रूप गुरु हैं, सदगुरु दीनदयाल
करते सबको आप समाना, सदगुरु तारनहार
भज ले नारायण का नाम-

नारायण-नाराय जपते, नारद वीणा हाथ
नारायण कहते कहलाते, देते भक्ति अपार
भज ले नारायण का नाम-

नारायण जिस जिसने गाया, पहुंचा हरि के धाम
नारायण बिन मुक्ति नहीं हैं, गाते वेद पुराण
भज ले नारायण का नाम-

नारायण की कृपा से ही, जन्म्यो भक्त प्रहलाद
दानव घर भक्ति का दर्शन, प्रगटे श्री भगवान
भज ले नारायण का नाम-

नारायण जप पाप को काटे, पुण्य बढ़े है अपार
तन मन से नारायण भज ले, सेवा कर निष्काम
भज ले नारायण का नाम-

"हरि गुरु भेद ना जानिए, दोनों तत्त्व से एक
हरि ही सबमें समाये हैं, लेके गुरु का रूप "

Tuesday, 30 October 2012

यह कदम का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे


यह कदम का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे
मैं भी इस पर बैठ कन्या बनता दीरे दीरे 
ले देती तुम मुझे बासुरी दो पैसो वाली 
किसी तरह नीची हो जाती ये कदम की डाली 
तुम्हे नहीं कुछ कहता मैया चुपके - चुपके आता 
वाही बैठ फिर बड़े मजे से मैया बासुरी बजता
अम्मा अम्मा कह बंसी के स्वर में तुम्हे बुलाता
बहुत बुलाने पर भी माँ जब नही उतर कर आता 
माँ, तब माँ का ह्रदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता
तुम आचल फैला कर अम्मा वाही पेड़ के निचे 
इश्वर से कुछ विनंती करती बैठी आखे मीचे 
तुम्हे ध्यान मई लगी देख माँ धीरे धीरे आता 
और तुम्हारे फैले आचल के नीचे चुप जाता 
तुम घबरा कर आँख खोलती, पैर माँ खुश हो जाती
जब अपने मुन्ना रजा को गोदी मैं ही पाती 
इस्सी तरह कुछ खेला करते हम तुम धीरे-धीरे 
यह कदम का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे

Monday, 29 October 2012

हनुमान चालीसा



श्री राम जय राम जय जय दयालु ।
श्री राम जय राम जय जय कृपालु ॥

अतुलित बल धामं हेम शैलाभ देहम्‌ । 
दनुज वन कृषाणं ज्ञानिनां अग्रगणयम्‌ । 
सकल गुण निधानं वानराणामधीशम्‌ । 
रघुपति प्रियभक्तं वातजातं नमामि ॥

श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि ।
वरनऊँ रघुवर विमल जसु, जो दायकु फल चारि ॥
बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरो पवन कुमार ।
बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेश विकार ॥

हमारे रामजी से राम राम, कहियो जी हनु्मान,
कहियो जी हनु्मान, कहियो जी हनु्मान ॥

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥
राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनिपुत्र पवन सुत नामा ॥
महावीर बिक्रम बजरंगी । कुमति निवार सुमिति के संगी ॥
कंचन वरन विराज सुवेसा । कानन कुंडल कुंचित केसा ॥
हाथ बज्र औ ध्वजा विराजै । काँधे मूँज जनेऊ साजै ॥
शंकर सुवन केसरीनंदन । तेज प्रताप महा जग बंदन ॥
विद्यावान गुनी अति चातुर । राम काज करिबे को आतुर ॥
प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया । राम लखन सीता मन बसिया ॥

हमारे रामजी से राम राम, कहियो जी हनु्मान,
कहियो जी हनु्मान, कहियो जी हनु्मान ॥

सूक्ष्म रूप धरि सियहि देखावा । बिकट रूप धरि लंक जरावा ॥
भीम रूप धरि असुर सँहारे । रामचंन्द्र के काज सँवारे ॥
लाय सजीवन लखन जियाये । श्री रघुबीर हरषि उर लाये ॥
रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई । तुम मम प्रिय भरत सम भाई ॥
सहस बदन तुम्हरो जस गावैं । अस कहि श्रीपति कंठ लगावैं ॥
सनकादिक ब्रह्मादि मुनीसा । नारद सारद सहित अहीसा ॥
जम कुबेर दिगपाल जहाँ ते । कबि कोबिद कहि सके कहाँ ते ॥
तुम उपकार सुग्रीवहिं कीन्हा । राम मिलाय राज पद दीन्हा ॥

हमारे रामजी से राम राम, कहियो जी हनु्मान,
कहियो जी हनु्मान, कहियो जी हनु्मान ॥

तुम्हरो मंत्र विभीषन माना । लंकेश्वर भये सब जग जाना ॥
जुग सहस्त्र जोजन पर भानू । लील्यो ताहि मधुर फल जानू ॥
प्रभु मुद्रिका मेलि मुख माहीं । जलधि लाँघि गये अचरज नाहीं ॥
दु्र्गम काज जगत के जेते । सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते ॥
राम दुआरे तुम रखवारे । होत न आज्ञा बिनु पैसारे ॥
सब सुख लहैं तुम्हारी सरना । तुम रच्छक काहू को डर ना ॥
आपन तेज सम्हारो आपै । तीनों लोक हाँक तें काँपै ॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै । महावीर जब नाम सुनावैं ॥

हमारे रामजी से राम राम, कहियो जी हनु्मान,
कहियो जी हनु्मान, कहियो जी हनु्मान ॥

नासै रोग हरै सब पीरा । जपत निरंतर हनुमत बीरा ॥
संकट तें हनुमान छुड़ावै । मन क्रम वचन ध्यान जो लावै ॥
सब पर राम तपस्वीं राजा । तिन के काज सकल तुम साजा ॥
और मनोरथ जो कोइ लावै । तासु अमित जीवन फल पावै ॥
चारों जुग परताप तुम्हारा । है परसिद्ध जगत उजियारा ॥
साधु संत के तुम रखबारे । असुर निकंदन राम दुलारे ॥
अष्ट सिद्धि नौ निधि के दाता । अस बर दीन जानकी माता ॥
राम रसायन तुम्हरे पासा । सदा रहो रघुपति के दासा ॥

हमारे रामजी से राम राम, कहियो जी हनु्मान,
कहियो जी हनु्मान, कहियो जी हनु्मान ॥

तुम्हरे भजन राम को पावै । जनम जनम के दुख बिसरावै ॥
अंत काल रघुबर पुर जाई । जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई ॥
और देवता चित्त न धरई । हनुमत सेइ सर्ब सुख करई ॥
संकट कटै मिटै सब पीरा । जो सुमिरैं हनुमत बलबीरा ॥
जै जै जै हनुमान गोसाईं । कृपा करहु गुरू देव की नाईं ॥
जो शत बार पाठ कर कोई । छूटे बंदि महा सुख होई ॥
जो यह पढै हनुमान चलीसा । होय सिद्धि साखी गौरीसा ॥
तुलसीदास सदा हरि चेरा । कीजै नाथ हृदय मँह डेरा ॥

हमारे रामजी से राम राम, कहियो जी हनु्मान,
कहियो जी हनु्मान, कहियो जी हनु्मान ॥

पवनतनय संकट हरन, मंगल मूरति रुप ।
राम लखन सीता सहित, हृदय बसहु सुर भूप ॥

श्री राम जय राम जय जय राम ।

भजन राम बिनु तन को




राम बिनु तन को ताप जाई।
जल में अगन रही अधिकाई॥
राम बिनु तन को ताप जाई॥

तुम जलनिधि मैं जलकर मीना।
जल में रहहि जलहि बिनु जीना॥
राम बिनु तन को ताप जाई॥

तुम पिंजरा मैं सुवना तोरा।
दरसन देहु भाग बड़ मोरा॥
राम बिनु तन को ताप जाई॥

तुम सद्गुरु मैं प्रीतम चेला।
कहै कबीर राम रमूं अकेला॥
राम बिनु तन को ताप जाई॥

Sunday, 28 October 2012

BHAGAVAD GITA SUMMARY in Hindi (गीता सार)


  • क्यों व्यर्थ की चिंता करते हो? किससे व्यर्थ डरते हो? कौन तुम्हें मार सक्ता है? आत्मा ना पैदा होती है, मरती है।
  • जो हुआ, वह अच्छा हुआ, जो हो रहा है, वह अच्छा हो रहा है, जो होगा, वह भी अच्छा ही होगा। तुम भूत का पश्चाताप करो। भविष्य की चिन्ता करो। वर्तमान चल रहा है।
  • तुम्हारा क्या गया, जो तुम रोते हो? तुम क्या लाए थे, जो तुमने खो दिया? तुमने क्या पैदा किया था, जो नाश हो गया? तुम कुछ लेकर आए, जो लिया यहीं से लिया। जो दिया, यहीं पर दिया। जो लिया, इसी (भगवान) से लिया। जो दिया, इसी को दिया।
  • खाली हाथ आए और खाली हाथ चले। जो आज तुम्हारा है, कल और किसी का था, परसों किसी और का होगा। तुम इसे अपना समझ कर मग्न हो रहे हो। बस यही प्रसन्नता तुम्हारे दु:खों का कारण है।
  • परिवर्तन संसार का नियम है। जिसे तुम मृत्यु समझते हो, वही तो जीवन है। एक क्षण में तुम करोड़ों के स्वामी बन जाते हो, दूसरे ही क्षण में तुम दरिद्र हो जाते हो। मेरा-तेरा, छोटा-बड़ा, अपना-पराया, मन से मिटा दो, फिर सब तुम्हारा है, तुम सबके हो।
  • यह शरीर तुम्हारा है, तुम शरीर के हो। यह अग्नि, जल, वायु, पृथ्वी, आकाश से बना है और इसी में मिल जायेगा। परन्तु आत्मा स्थिर है - फिर तुम क्या हो?
  • तुम अपने आपको भगवान के अर्पित करो। यही सबसे उत्तम सहारा है। जो इसके सहारे को जानता है वह भय, चिन्ता, शोक से सर्वदा मुक्त है।
  • जो कुछ भी तू करता है, उसे भगवान के अर्पण करता चल। ऐसा करने से सदा जीवन-मुक्त का आन्दन अनुभव करेगा।