Tuesday, 26 March 2013

कबीर वाणी 2….. kabir vani2



दुख मे सुमिरन सब करे, सुख मे करे न कोय ।
जो सुख मे सुमिरन करे, दुख कहे को होय ॥ 1 ॥

तिनका कबहुँ ना निदये, जो पाँव तले होय ।
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥ 2 ॥

माला फेरत जुग भया,फिरा न मन का फेर ।
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥ 3 ॥

गुरु गोविन्‍द दोनो खड़े, काके लागूं पाँय ।
बलिहारी गुरु आपनो, जिन गोविन्‍द दियो मिलाय ॥ 4 ॥

बलिहारी गुरु आपनो, घड़ी-घड़ी सौ सौ बार ।
मानुष से देवत किया, करत न लागी बार ॥ 5 ॥

कबीरा माला मनही की, और संसारी भीख ।
माला फेरे हरी मिले, गले रहट के देख ॥ 6 ॥

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